विधानसभा की हार के बाद कांग्रेस में सन्नाटा,कांग्रेस के पास खोने कुछ नहीं,अभी गम से उबर नहीं पाई…

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संगठन की स्थिति हुई और कमजोर,बड़े नेताओं ने साधी चुप्पी,कम से कम एक विधायक ने तो रखी लाज

लोकसभा चुनाव को लेकर जबलपुर में कांगे्रस की संगठनात्मक तैयारी फिलहाल शून्य पर खड़ी हुई है। ऐसा भी नहीं लगता कि कोई नेता व्यक्तिगत तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ने का इच्छुक हो। दरअसल, विधानसभा में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस अभी गम से उबर नहीं पाई है। कांग्रेसियों के पास उत्साह की मात्रा बहुत कम बची है,लेकिन लोकसभा चुनाव तो लड़ना ही पड़ेगा।

प्रश्न उठ रहा है कि कांग्रेस वाकई चुनाव लड़ेगी या फिर केवल रस्म अदा करेगी। लोकसभा चुनाव के लिए गिने हुये दिन बचे हैं और कांग्रेस को इतने ही दिनों में ढेर सारे काम करने हैं,लेकिन कांग्रेसी हैं कि उनकी विधानसभा चुनाव की समीक्षा ही समाप्त  नहीं हो रही है। जानकारों का कहना है कि कांग्रसियों को अभी एक बार फिर से उठकर लड़ने की आवश्यकता है,क्योंकि राजनीति में कोई हार अंतिम नहीं होती।

कांग्रेस के संगठन की स्थिति किसी से छिपी नहीं है-

विधानसभा चुनाव में भी संगठन  की कमजोरी साफ नजर आ गयी। कांगे्रसी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि पार्टी में व्यक्ति चुनाव लड़ता है, पार्टी नहीं। यदि लोकसभा चुनाव में भी यही हालात रहे तो बीते लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार की हार और बड़ी हो सकती है, ऐसा विशेषज्ञों का दावा है। बीते लोकसभा चुनाव में जब जबलपुर जिले में आठ में से चार विधायक कांग्रेस के पास थे तब लोकसभा चुनाव में कड़ी चुनौती थी और अब तो सिर्फ एक ही विधायक है।

कांग्रेस के पास खोने कुछ नहीं –

कांग्रेस के पास अच्छी बात ये है कि खोने के लिए कुछ नहीं है और ये भी याद रखना चाहिए कि इस बार भाजपा के पास लोकसभा चुनाव में नया चेहरा होगा। लिहाजा, कांग्रेस एक संगठन के तौर पर एक हो जाए तो जीत नामुम्किन नहीं है,लेकिन इसके लिए कई पड़ाव पार करने होंगे। हालाकि, प्रदेश कांग्रेस ने रणनीति तैयार करनी शुरु की है और कहा जा रहा है कि जनवरी के प्रथम सप्ताह से इसका असर दिखेगा।

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