बीजाक्षरों का अनुपम प्रयोग: महाअर्चना सरस्वती विधान संपन्न

0
Spread the love

नन्हें जैन मंदिर एवं बरियावाला जैन मंदिर ट्रस्ट के तत्वाधान में आज परम पूज्य 108 उपाध्याय विरंजन सागर मुनिराज ससंघ ने आज डी.एन. जैन स्कूल प्रांगण में युवाओं और बुजुर्गो के लिए एक अनूठा विधान जिसे जैनागम में सरस्वती महा अर्चना विधान के नाम से जाना जाता है बडे भव्य रूप से आयोजित किया गया। इस विधान का मुख्य उद्देश्य समाज में सुबुद्धि का फैलाव और दुबुद्धि का शमन हो । मुनिराज द्वारा आज 7:30 बजे से आरंभ किया गया। जिसमें मुनिराज अपने पूरे संघ के साथ विराजमान थे । मुनिराज द्वारा चातुर्मास में योगदान कर्ताओं को सम्मान करते हुए। पूज्य गुरूवर विराग सागर एवं विद्यासागर मुनिराज के स्मृति चिन्ह भेट कर सम्मानित किया गया। इसके तत्पश्चात् 1008 तीर्थकर भगवान की शांतिधारा संपन्न कराई गई जिसमें उनका अभिषेक रजत पात्रों से किया गया। इसके पश्चात् शुरू हुआ महाअर्चन सरस्वती महाअर्चन विधान जिसे चयनित पात्रों के साथ 350 जोडों एवं 175 एकल स्त्री पुरुषों ने बाल ब्रहमचारी सौरभ भैया द्वारा कराया गया जिसमें कठिन मंत्रों एवं बीजाक्षरों का सुमधुर पाठ करते हुए लगभग 625 स्त्री पुरूषों ने नाचते गाते हुए भावपूर्ण माता सरस्वती को अर्ध समर्पण किए।जैनागम में विधान के पात्रों का मुख्य महत्व होता है मुनिराज द्वारा चयनित पात्रों में सौधर्म इंद्र की भूमिका डॉ. निधी जैन सुनील जैन तारबाबू, कुबेर इंद्र श्रीमति ममता जैन पंडित अशोक जैन, विधान महानायक शिखा – अंशुल जैन, महेन्द्र इंद्र सरिता सेजय जैन, सनत इंद्र सरिता जैन रिक्कू जैन एवं श्रावक श्रेष्ठी का पद सौम्या अंशु जैन जबलपुर एक्सप्रेस एवं विधान का दीप प्रज्जवलन डॉ. चंन्द्रा जैन – संजय चौधरी द्वारा किया गया।आज का यह विधान माता सरस्वती को समर्पित था, जैनागम में इस विधान का बड़ा महत्व बताया गया है। इस विधान में बीजाक्षरों एवं मंत्रों में कोई भी गलती नहीं हो इसलिए मुनिरान विरंजन सागर ने ससंघ अपने कुशल निर्देशन किया। इसमें मुनिराज विसौम्य सागर ने मंत्रों को स्पष्ट और मधुर आवाज पढ़ते हुए विधान संपन्न कराया।ज्ञात हो कि समस्त जैन मुनि वर्षाकाल के चार माह किसी एक स्थान पर स्थिर होकर प्रभु आराधना एवं जनकल्याण किया करते है, जैन दर्शनशास्त्र में इसे चातुर्मास कहा जाता है। यह वर्षाकाल उपाध्याय मुनिश्री विरंजन सागर जी ने नन्हें जैन मंदिर एवं बरियावाला ट्रस्ट के तत्वाधान में अपना यह चातुर्मास विस्तारा था। जो र्निविध्न हुआ। कल १९ नवंबर को भव्य पिच्छीका परिवर्तन के साथ इसका समापन होगा।किसे मिलेगी गुरु की पिच्छिकायहाँ उल्लेखनीय है कि जैन मुनि अपने साथ सिर्फ कमंडल और पिच्छिका दो ही उपकरण होते है। प्रत्येक चातुर्मास की समाप्ति पर पिच्छिका किसी योग्य, धर्मनिष्ठ एवं संयम पालनकर्ता श्रावक को दी जाती है यह पिच्छिका को प्राप्त करने वाला श्रावक सम्मान व संपदा को प्राप्त करता है किन्तु इसके नियम बडे कठिन होते है। जिसमें पिच्छिका प्राप्त होने के बाद ब्रहमचर्य, सदाचार का पालन, अपने स्वभाव में सरलता, तामसिक भोजन का पूर्णतः त्याग, मानसिक हिंसा का त्याग, उपवास रखना, शास्त्रों में कही हुई बातों का पूर्णतः पालन करना, चारों प्रकार के दान करना, जीवों पर हमेशा दया भाव रखना जैसे कई कठिन धर्म व्रतों का पालन करना होता है। इसमें सभी श्रावक जन उत्सुकता से जानना चाहते है कि समाज में ऐसी चर्या का पालन करने वाले कौन है और मुनिराज अपनी पिच्छिका किस योग्य श्रावक को देगें।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *