28 को आचार्य रजनीश के धूमधाम से कार्यक्रम का होगा आयोजन

बड़े सौभाग्य की बात है कि आचार्य रजनीश जो बाद में शमवान श्री रजनीश और आखीर में ओशी कहसाप, अपने 53 साल 39 दिन के अन्य जीवन कान में सर्वाधिक समय लगभग 20 साल जबलपुर छ। थथां से 30 जून 1970 को मुंबई रहने के लिए जाना था। अतः 28 जून को शहीद स्मारक भवन में एक अनि समारोह रखा गया था जिसमें नगर के बड़े-बड़े विख्यात आदरणीय लोगों ने भाषण दिए थे। आखीर में ओ से बोलना था तो उन्होंने कहा था कि एक मित्र ने कहा कि मैं जबलपुर छोड़कर मुंबई जा रहा हूं। तो मुंबई तो जा रहा हूं लेकिन जबलपुर छोड़कर जा रहा हूं यह कहना ठीक नहीं। क्योंकि जबलपुर छोड़ना तो संभव नहीं है। जबलपुर तो मेरे हाड़, मांस, मजजा में समाया हुआ है। और जहां भी जाऊंगा जबलपुर का ही कहलाऊंगा, एक बार ओशो एक वृद्ध प्रोफेसर के साथ चांदनी रात में नर्मदा में नौका विहार कर रहे थे। वृद्ध प्रोफेसर अनंदातिरेक में रोने लगे और कहा कि नाव को जरा किनारे टच करवाओं मैं स्पर्श करके अनुभव करना चाहता हूं कि संगमरमर है जो इतना सुंदर दिख रहा है। कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। ओशो ने कहा चांदनी रात में बोटिंग इतना शानदार होता है कि शायद ही दुनिया में कहीं इतना सौंदर्य हो। यह कहते हुए ओशो ने नाव को किनारे लगवाया, वृद्ध ने संगमरमर को स्पर्श किया और कहने लगा अद्भुता अद्भुता, और जबलपुर का यह भी एक बड़ा सौभाग्य है कि 21 मार्च 1953 को ओशो को भंवर ताल गार्डन में एक मौल श्री वृक्ष के नीचे दिव्य ज्ञान हुआ, जबलपुर के व आसपास के सारे सन्यासी निवेदन करते हैं मान्य पदाधिकारियों से कि अंदर ताल गार्डन का नाम ओशो इंटरनेशनल पार्क रख दिया आए और जबलपुर का नाम जाबालि ओशोपुरम रख दिया जाए तो यह जबलपुर के लिए आश्चर्यजनक सौभाग्य ले आएगा, ओशो ने अपने लेक्चरर्स में कई बार जाबालि को बहुत प्रेम से स्मरण किया है, आज के इस प्रेस वार्ता में स्वामी आनंद परमहंस उर्फ विश्व विख्यात जादूगर आनंद की उपस्थिति ने हम लोगों को बहुत आनंदित किया है। 36 देशों में 38000 शो इनके हो चुके हैं। ओशो के प्रेमी तब से हैं जब 7 साल के थे लेकिन जादू के भी प्रेमी थे जादू सीखते सीखते जादू के क्षेत्र में विश्व विख्यात हो गए, कि आचार्य रजनीश जो बाद में शमवान श्री रजनीश और आखीर में ओशी कहसाप, अपने 53 साल 39 दिन के अन्य जीवन कान में सर्वाधिक समय लगभग 20 साल जबलपुर छ। थथां से 30 जून 1970 को मुंबई रहने के लिए जाना था। अतः 28 जून को शहीद स्मारक भवन में एक अनि समारोह रखा गया था जिसमें नगर के बड़े-बड़े विख्यात आदरणीय लोगों ने भाषण दिए थे। आखीर में ओ से बोलना था तो उन्होंने कहा था कि एक मित्र ने कहा कि मैं जबलपुर छोड़कर मुंबई जा रहा हूं। तो मुंबई तो जा रहा हूं लेकिन जबलपुर छोड़कर जा रहा हूं यह कहना ठीक नहीं। क्योंकि जबलपुर छोड़ना तो संभव नहीं है। जबलपुर तो मेरे हाड़, मांस, मजजा में समाया हुआ है। और जहां भी जाऊंगा जबलपुर का ही कहलाऊंगा, एक बार ओशो एक वृद्ध प्रोफेसर के साथ चांदनी रात में नर्मदा में नौका विहार कर रहे थे। वृद्ध प्रोफेसर अनंदातिरेक में रोने लगे और कहा कि नाव को जरा किनारे टच करवाओं मैं स्पर्श करके अनुभव करना चाहता हूं कि संगमरमर है जो इतना सुंदर दिख रहा है। कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। ओशो ने कहा चांदनी रात में बोटिंग इतना शानदार होता है कि शायद ही दुनिया में कहीं इतना सौंदर्य हो। यह कहते हुए ओशो ने नाव को किनारे लगवाया। वृद्ध ने संगमरमर को स्पर्श किया और कहने लगा अद्भुता अद्भुता, और जबलपुर का यह भी एक बड़ा सौभाग्य है कि 21 मार्च 1953 को ओशो को भंवर ताल गार्डन में एक मौल श्री वृक्ष के नीचे दिव्य ज्ञान हुआ, जबलपुर के व आसपास के सारे सन्यासी निवेदन करते हैं मान्य पदाधिकारियों से कि अंदर ताल गार्डन का नाम ओशो इंटरनेशनल पार्क रख दिया आए और जबलपुर का नाम जाबालि ओशोपुरम रख दिया जाए तो यह जबलपुर के लिए आश्चर्यजनक सौभाग्य ले आएगा, ओशो ने अपने लेक्चरर्स में कई बार जाबालि को बहुत प्रेम से स्मरण किया है, इस प्रेस वार्ता में स्वामी आनंद परमहंस उर्फ विश्व विख्यात जादूगर आनंद की उपस्थिति ने हम लोगों को बहुत आनंदित किया है। 36 देशों में 38000 शो इनके हो चुके हैं। ओशो के प्रेमी तब से हैं जब 7 साल के थे लेकिन जादू के भी प्रेमी थे जादू सीखते सीखते जादू के क्षेत्र में विश्व विख्यात हो गए ।