नये आपराधिक कानून 2023…

भारतीय संसद ने तीन ऐतिहासिक कानूनों भारतीय दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को क्रमशः भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 से प्रतिस्थापित करके आपराधिक न्याय प्रणाली में एक परिवर्तनकारी कदम उठाया है।
भारतीय मूल्यों पर आधारित ये नए कानून दंडात्मक से न्याय-उन्मुख दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देते हैं, जो श्भारतीय न्याय व्यवस्था को प्रतिबिंबित करता है। औपनिवेशिक युग के कानून ब्रिटिश हितों की रक्षा के लिए बनाये गये थे। इनमें भारतीयों से परामर्श नहीं किया गया था तथा इनमें ब्रिटिश केंद्रित शब्दावली और रूपरेखाएं अंतर्निहित थीं। ये विधायी परिवर्तन श्आजादी का अमृत महोत्सव की परिणति को चिह्नित करते हैं और अमृत काल की शुरूआत करते हैं जो वास्तव में स्वतंत्र भारत के निर्माण का प्रतीक है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के दिशा-निर्देश में संशोधन प्रक्रिया वर्ष 2019 में प्रारंभ हुई, जिसमें विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श शामिल था और न्यायपालिका के सदस्य, कानून विश्वविद्यालय, राज्य के अधिकारी और आम नागरिक शामिल थे। यह सहयोगात्मक प्रयास सुनिश्चित करता है कि नए कानून ऐसी न्याय प्रणाली हैं जो पूरी तरह से स्वदेशी होगी, यह भारत द्वारा, भारत के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार संचालित होगी। इसका मुख्य लक्ष्य ऐसी आपराधिक न्याय प्रणाली बनाना है जो न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है, बल्कि कानूनी व्यवस्था को भी और अधिक मजबूत बनाती है जिससे सभी के लिए सुलभ एवं त्वरित न्याय सुनिश्चित हो। यह सुधार भारत में एक निष्पक्ष, आधुनिक और न्यायपूर्ण कानूनी ढांचे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारतीय चिंतन पर आधारित न्याय प्रणाली
इन कानूनों का उद्देश्य भारतीय कानूनी प्रणाली में सुधार करना और भारतीय सोच पर आधारित न्याय प्रणाली स्थापित करना है। नए आपराधिक कानून श्लोगों को औपनिवेशिक मानसिकता और उसके प्रतीकों से मुक्त करेंगेश् और हमारे मन को भी उपनिवेशवाद से मुक्त करेंगे। यह दंड के बजाय न्याय पर ध्यान केन्द्रित है। सबके साथ समान व्यवहार मुख्य विषय है। यह कानून भारतीय न्याय संहिता की वास्तविक भावना को प्रकट करते हैं। इन्हें भारतीय संविधान की मूल भावना के साथ बनाया गया है। यह कानून व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। यह मानव अधिकारों के मूल्यों के अनुरुप है। यह पीड़ित-केन्द्रित न्याय सुनिश्चित करेंगे। इन कानूनों की आत्मा न्याय, समानता और निष्पक्षता है।
नागरिक केन्द्रित कानून
भारतीय लोकाचार को अपने मूल में रखने वाले नए आपराधिक कानून अधिक नागरिक केन्द्रित बनने की दिशा में बदलाव के प्रतीक हैं। बीएनएसएस की धारा 173 (1) में नागरिकों को मौखिक अथवा इलेक्ट्रॉनिक संचार (ई-एफआईआर), बिना उस क्षेत्र पर विचार किए जहां अपराध किया गया है, एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है। बीएनएसएस की धारा 173 (2) (1) के तहत नागरिक बिना किसी देरी के पुलिस द्वारा अपनी एफआईआर की एक निःशुल्क प्रति प्राप्त करने के हकदार हैं। बीएनएसएस की धारा 193 (3) (पप) के तहत पुलिस को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में पीड़ित को सूचित करना अनिवार्य है। बीएनएसएस की धारा 184 (1) के अनुसार पीड़िता की मेडिकल जांच उसकी सहमति से और अपराध की सूचना मिलने के 24 घंटे के भीतर की जाएगी। बीएनएसएस की धारा 184 (6) के तहत मेडिकल रिपोर्ट चिकित्सक द्वारा 7 दिनों के भीतर भेजी जाएगी।
बीएनएसएस धारा 18 के तहत नागरिकों को अभियोजन पक्ष की सहायता के लिए अपना स्वयं का कानूनी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और सुलभ बनाया गया है। धारा 230 बीएनएसएस में नागरिकों को दस्तावेज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। बीएनएसएस की धारा 396, इसमें पीड़ित नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा उपचार और मुआवजे का अधिकार है। बीएनएसएस की धारा 398 के अंतर्गत गवाह संरक्षण योजना का प्रावधान किया गया है। धारा 360 बीएनएसएस में अभियोजन से हटने के लिए सहमति देने से पहले न्यायालयों को पीड़ित की बात सुनने का अधिकार दिया गया है। यह आपराधिक न्याय के लिए श्न्याय केन्द्रित दृष्टिकोणश् का सबसे अच्छा उदाहरण है। बीएनएसएस की धारा 404 के तहत पीड़ितों को न्यायालय में आवेदन करने पर निर्णय की निःशुल्क प्रति प्राप्त करने का अधिकार मिला है। धारा 530 बीएनएसएस कानूनी जांच, पूछताछ और मुकदमे की कार्यवाही को इलेक्ट्रॉनिक रूप से आयोजित करने का प्रावधान है।
नए आपराधिक कानून पर एक नजर-
आईपीसी में धाराओं की संख्या 511 से घटाकर बीएनएस में 358 कर दी गई। 20 नये अपराध जोड़े गए। कई अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है। 6 छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है। कई अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है। कई अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है।
कुछ विशेषताएं-
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को एक अध्याय में समेकित किया गया है। धारा 69रू झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। धारा 70(2)रू सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ( बी एन एस एस )
मुख्य परिवर्तन-
सीआरपीसी में धाराओं की संख्या 484 से बढ़ाकर बीएनएसएस में 531 की गई। 177 धाराओं को प्रतिस्थापित किया गया। 9 नई धाराएं जोड़ी गई। 14 धाराएं निरस्त की गई।
कुछ विशेषताएं-
जांच में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा। मजिस्ट्रेट द्वारा जुर्मानों में वृद्धि की गई है। एफआईआर प्रक्रियाओं और पीड़ितों की सुरक्षा को सुव्यवस्थित करना। धारा 173 जीरो एफआईआर और ई एफआईआर का प्रावधान किया गया है। धारा 176 (1) (ख) यह कानून ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पीड़ित को बयान रिकॉर्डिंग का अधिकार देता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 ( बीएसए)
मुख्य परिवर्तन-
आईईए में धाराओं की संख्या 167 से बढ़ाकर बीएसए 170 की गई। 24 धाराएं बदली गई। 2 नई धाराएं जोड़ी गई। 6 धाराएं निरस्त की गईं।
कुछ विशेषताएं-
इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है। डिजिटल साक्ष्य प्रामाणिकता के लिए रूपरेखा प्रदान करता है। धारा 2 (1) (घ) दस्तावेजों की विस्तारित परिभाषा। धारा 61 डिजिटल रिकॉर्ड की स्वीकार्यता में समानता दी गई है। धारा 62 और 63 इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता दी गई है।
महिलाएं और बच्चे –
नए आपराधिक कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए 37 धाराएं शामिल हैं। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को पीड़ित और अपराधी दोनों के संदर्भ में लिंग तटस्थ बनाया गया है। (धारा 2 बीएनएसएस) । 18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। (धारा 70 बीएनएस) । झूठे वादे या छद्म पहचान के आधार पर यौन शोषण करना अब आपराधिक कृत्य माना जाएगा। (धारा 69 बीएनएस)। चिकित्सकों को बलात्कार से पीड़ित महिला की मेडिकल रिपोर्ट सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी को भेजने का आदेश दिया गया है। (धारा 51 (3) बीएनएसएस)।
न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी का समावेश-
आपराधिक न्याय प्रणाली के सभी चरणों का व्यापक डिजिटलीकरण किया गया। इसमें ई-रिकॉर्ड, जीरो- एफआईआर, ई एफआईआर , समन, नोटिस, दस्तावेज प्रस्तुत करना और ट्रायल शामिल हैं। (धारा 173 बीएनएसएस)। पीड़ितों के इलेक्ट्रॉनिक बयान के लिए ई-बयान तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाहों, अभियुक्तों, विशेषज्ञों और पीड़ितों की उपस्थिति के लिए ई अपेयरेंस की शुरूआत की गई। (धारा 530 बीएनएसएस)।दस्तावेजों की परिभाषा में सर्वर लॉग, स्थान संबंधी साक्ष्य और डिजिटल वॉयस संदेश शामिल होंगे। साक्ष्य का कानून अब इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अदालतों में भौतिक साक्ष्य के बराबर मानता है। (धारा 2 (1) (क) बीएसए)। कानून के तहत द्वितीयक साक्ष्य का दायरा व्यापक हो गया है जिसमें मौखिक स्वीकारोक्ति, लिखित स्वीकारोक्ति और दस्तावेज की जांच करने वाले कुशल व्यक्ति का साक्ष्य शामिल है। (धारा 58 बीएसए)। तलाशी और जब्ती की वीडियोग्राफी के लिए प्रक्रियाएं शुरू की गई, जिसमें जब्त वस्तुओं की सूची और गवाहों के हस्ताक्षर तैयार करना शामिल है। (धारा 105 बीएनएसएस)।
पीड़ित-केन्द्रित दृष्टिकोण –
यह पीड़ित को आपराधिक कार्यवाही में एक हितधारक के रूप में मान्यता देता है तथा उसे मुकदमा वापस लेने से पूर्व सुने जाने का अधिकार प्रदान करता है। (धारा 360 बीएनएसएस)। पीडित को एफआईआर की एक प्रति प्राप्त करने तथा उसे 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार है। (धारा 193 (3) (पप) बीएनएसएस)। गवाहों को धमकियों और भय से बचाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, गवाह संरक्षण योजना की शुरूआत की गई। (धारा 398 बीएनएसएस)। बलात्कार पीड़िता का बयान केवल महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा और उसकी अनुपस्थिति में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा। (धारा 183 (6) (ए) बीएनएसएस)।
अपराध एवं दंड को पुनर्परिभाषित किया गया –
छीनाझपटी एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध है। (धारा 304 बीएनएस)। श्आतंकवादी कृत्यश् की परिभाषाः इसमें ऐसे कृत्य शामिल हैं जो भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं या किसी समूह में आतंक फैलाते हैं। (धारा 113 बीएनएस)। राजद्रोह में परिवर्तनः राजद्रोह के अपराध को समाप्त कर दिया गया है तथा भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करने के लिए श्देशद्रोहश् शब्द का प्रयोग किया है। (धारा 152 बीएनएस)। श्मॉब लिंचिंगश् को एक ऐसे अपराध के रूप में शामिल किया गया जिसके लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड है। (धारा 103 (2) बीएनएस)। संगठित अपराध को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। (धारा 111 बीएनएस)।
समय पर और शीघ्र न्याय –
समयावधि के लिए बीएनएसएस में 45 धाराओं को जोड़ा गया है। आरोप पर पहली सुनवाई के प्रारंभ से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाएंगे। (धारा 251 बीएनएसएस)। आरोप तय होने की तारीख से 90 दिन पूरे होने के बाद घोषित अपराधियों के खिलाफ अनुपस्थिति में अभियोजन की कार्यवाही शुरू होनी चाहिए। (धारा 356 बीएनएसएस)। अभियोजन के लिए मंजूरी, दस्तावेजों की आपूर्ति, प्रतिबद्ध कार्यवाही, निर्वहन याचिकाओं को दाखिल करना, आरोप तय करना, निर्णय की घोषणा और दया याचिकाओं को दाखिल करना निर्धारित समयसीमा के भीतर पूरा करना अनिवार्य किया गया है। (धारा 251, 258 बीएनएसएस)। आपराधिक कार्यवाही में दो से अधिक स्थगन देने की अनुमति नहीं है। (धारा 346 बीएनएसएस)। समन जारी करने और उसकी तामील करने तथा न्यायालय के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग। (धारा 530 बीएनएसएस)।
आपराधिक न्याय प्रणाली में परिवर्तन –
मजिस्ट्रेटों को उन मामलों में समरी ट्रायल करने का अधिकार है जिनमें तीन वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है।समय पर न्यायः आरोप पर पहली सुनवाई शुरू होने से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए। किसी भी आपराधिक अदालत में मुकदमे के समापन के बाद, निर्णय की घोषणा में 45 दिनों से अधिक समय नहीं लगेगा। (धारा 251, 258 बीएनएसएस)।
अभियोजन निदेशालयः राज्य में एक अभियोजन निदेशालय स्थापित होगा, जिसके अंतर्गत प्रत्येक जिले में जिला अभियोजन निदेशालय होंगे। अभियोजन निदेशालय न्यायलयों में मामलों की कार्यवाहियों के शीघ्र निपटारे और अपील फाइल करने पर अपनी राय देने और मानीटर करेंगे। (धारा 20 बीएनएसएस)।
पूछताछ और परीक्षण के लिए इलेक्ट्रॉनिक मोडः सभी पूछताछ और परीक्षण इलेक्ट्रॉनिक मोड में भी आयोजित किए जा सकता है। (धारा 530 बीएनएसएस)। विचाराधीन कैदियों की रिहाईः पहली बार अपराध करने वाले अपराधियों को रिहा किया जा सकता है, यदि विचाराधीन कैदियों की हिरासत अवधि सजा की एक तिहाई तक पहुंच जाती है। (धारा 479 बीएनएसएस)।
पुलिस का जवाबदहा और पारदर्शिता –
तलाशी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य है। (धारा 105 बीएनएसएस)। कोई भी गिरफ्तारी, ऐसे अपराध के मामलों में जो तीन वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय है और ऐसा व्यक्ति जो गंभीर बीमारी से पीड़ित है या 60 वर्ष से अधिक की आयु का है, ऐसे अधिकारी, जो पुलिस उप अधीक्षक से नीचे की पंक्ति का न हो, की पूर्व अनुमति के बिना नहीं की जाएगी। (धारा 35 (7) बीएनएसएस)। गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती और जांच में पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के लिए 20 से अधिक धाराएं शामिल की गई हैं। असंज्ञेय मामलों में, ऐसे सभी मामलों की दैनिक डायरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को पाक्षिक रूप से भेजी जाएगी। (धारा 174 (1) (पप) बीएनएसएस)।
आईपीसी और बीएनएस की सामान्यएतरू प्रयुक्त धाराएं –
आईपीसी और बीएनएस की सामान्यतः प्रयुक्त धाराओ में पहले हत्या की सजा पर आईपीसी के तहत धारा 302 थी, जिसे अब बीएनएस के तहत 103 किया गया है । इसी तरह दहेज मृत्यु के लिए सजा पर धारा 304 बी थी, जिसे अब धारा 80, चोरी की सजा पर धारा 379 थी, जिसे अब धरा 303 , बलात्कार की सजा पर धारा 376 थी, जिसे अब धारा 64, धोखाधडी के लिए धारा 420 थी, जिसे अब धारा 318, पति व्दारा क्रूरता का शिकार महिलाओ के लिए धारा 498ए थी , जिसे अब धारा 85 तथा आपराधिक षंडयंत्र के लिए सजा हेतु आईपीसी की धारा 120 बी थी, जिसे अब बी एन एस के तहत धारा 61 किया गया है ।
सीआरपीसी और बी एन एस की सामान्यतः प्रमुख धाराएं –
सीआरपीसी और बी एन एस की सामान्यतः प्रमुख धाराओ में कार्यकारी मजिस्ट्रेट व्दारा आदेश जारी करने की शक्ति हेतु सीआर पीसी की धारा 144 थी, जिसे अब बी एन एस एस के तहत धारा 163, संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए गिरफ्तारी के लिए सी आर पीसी की धारा 151 थी, जिसे अब बी एन एस एस के तहत धारा 170, प्राथमिकी के लिए सी आर पीसी के तहत धारा 154 थी, जिसे अब बी एन एस एस के तहत धारा 173 तथा अंतिम रिपोर्ट के लिए सी आर पीसी के तहत धारा 173 थी, जिसे अब बी एन एस एस के तहत धारा 193 किया गया है ।