ये नया भारत है, अब दंड संहिता के बजाय न्याय संहिता की बात की होगी

देश बदल रहा है,पहली बार किसी कानून को लेकर आम जन से भी ली गई राय
हमारी परंपरा न्याय की परंपरा,अपनी संस्कृति पर गर्व करने का मौका मिलेगा
अब हमारा देश सचमुच बदल रहा है,क्योकि पहली बार किसी कानून को लेकर आम जन से भी सुझाव और राय ली गई । पहले नेता अपने अनुसार किसी भी विधेयक को पास करके कानून में परिवर्तित या नया कानून बना लेते रहे है । लेकिन अब नरेंद्र मोदी की शश्क्त सरकार में एसा नहीं रहा । बता दे कि इसके पहले भी नई शिक्षा नीति: 2020 लागू करने के पहले करीब 2 लाख लोगों के सुझाव प्राप्त हुए थे। हालांकि ये न्यायिक व्यवस्था से संबन्धित नही था परंतु आम जन के हित से जुड़ा बिषय रहा चूंकि जीवन में शिक्षा अहम है । भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 ,न्यायायिक व्यवस्था के भारतीयकरण कि दिशा में महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम है यह सहिता न्याय के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को मजबूती देती है साथ ही यह भी सुनिश्चित करती है कि सभी को समान और त्वरित न्याय मिले । रोशन सबेरा समाचार सरकार के इस पहल की सराहना करता है ।
(साभार- संपादक रोशन बाथरे )
अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे भारतीय दंड संहिता, सीआरपीसी, भारतीय साक्ष्य अधिनियम ये सारे नियम बदलते हुए नए प्रकार के कानून लागू होने वाले हैं। अब दंड संहिता के बजाय न्याय संहिता की बात की जाएगी। अर्थात न्याय के आधार पर हमारी व्यवस्था चलनी चाहिए। अंग्रेज जब तक हम पर हावी थे तब तक वो दंड की बात करते थे। हमारी परंपरा न्याय की परंपरा है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ये तीनों कानून पूरे देशवासियों के जीवन में अंगीकार होंगे। उससे सुविधा मिलेगी। अपनी संस्कृति पर गर्व करने का मौका मिलेगा। गुलामी के प्रतीकों को समाप्त करने के क्रम में कुछ कानूनों में अमूलचूल परिर्वतनों का कार्य हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश में लागू पुलिस और न्याय व्यवस्था से जुड़े कई बदलाव किए जा रहे हैं। यह समाज के लिए सुव्यवस्थाएं स्थापित करने का प्रयास है। अच्छे और सकारात्मक भाव के साथ किए गए इन परिवर्तनों के लिए केंद्र सरकार बधाई की पात्र है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल से देश में गुलामी की निशानियों को समाप्त करने के लिए विभिन्न कार्य हो रहे हैं। इस क्रम में एक जुलाई से देश में अनेक कानून नये स्वरूप में लागू होंगे। दंड के स्थान पर न्याय का महत्व बढ़ें एवं भारतीय नागरिकों को संविधान में प्रदत्त अधिकारों की रक्षा हो सके, इस चिंतन से तीन विधेयक निरस्त कर नए दंडनीय विधेयक लाए गए हैं। अंग्रेजों के समय से चले आ रहे ऐसे विधेयक एवं अधिनिय़म में भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (1898), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 शामिल हैं। भारतीय दंड संहिता 1860 को भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। दंड प्रक्रिया संहिता 1898 को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। इसी तरह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।
आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने करीब चार सौ घंटे के परिश्रम और विभिन्न स्तर की बैठकों के बाद व्यापक विचार-विमर्श पश्चात नए कानूनों के प्रारूपों को अंतिम रूप प्रदान किया है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर सुझाव भी प्राप्त किए गए। पूर्व में भी नई शिक्षा नीति: 2020 लागू करने के पहले करीब 2 लाख लोगों के सुझाव प्राप्त हुए थे। आइये जानते है इन पुराने कानूनों के बारे में(प्राप्त जानकारी के अनुसार) –
क्या है भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860-
शाही विधान परिषद द्वारा अधिनियमित भारतीय दण्ड संहिता भारत के अन्दर भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है। किन्तु यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू एवं कश्मीर में भी अब भारतीय दण्ड संहिता (IPC) लागू है। भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में 06 अक्टूबर सन् 1860 में लागू हुई।परंतु इसकी शुरुआत 1 जनवरी 1862 से हुई । (एक्ट क्रमांक 45/1860) भारतीय दंड संहिता 1860 में राज्य के अस्तित्व को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने के प्रावधान किए गए हैं और राज्य के खिलाफ अपराध के मामले में मौत की सजा या आजीवन कारावास और जुर्माने की सबसे कठोर सजा प्रदान की है। इसमें युद्ध छेड़ने, युद्ध करने के लिए हथियार इकट्ठा करने, राजद्रोह आदि जैसे अपराध शामिल हैं।
क्या है दंड प्रक्रिया संहिता 1973-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये निर्मित दण्ड प्रक्रिया है। यह सन् 1973 में पारित हुआ तथा 1 अप्रैल 1974 से लागू हुआ। ‘सीआरपीसी’ दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम है। जब कोई अपराध किया जाता है तो सदैव दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है। 1973 की सीआरपीसी की धारा 144 के तहत किसी भी राज्य या क्षेत्र के कार्यकारी मजिस्ट्रेट किसी दिए गए क्षेत्र में चार या अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाने का आदेश जारी कर सकते हैं। ऐसी “गैरकानूनी सभा” के प्रत्येक सदस्य पर कानून के तहत दंगा करने का आरोप लगाया जा सकता है।
क्या है भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872-
भारतीय साक्ष्य अधिनियम मूल रूप से 1872 में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया था। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 11 अध्याय और 167 धाराएँ हैं। यह तीन भागों में विभक्त है। इस अधिनियम ने बनने के बाद से 125 से अधिक वर्षों की अवधि के दौरान समय-समय पर कुछ संशोधन को छोड़कर अपने मूल रूप को बरकरार रखा है। साक्ष्य अधिनियम 1872 के जनक कौन हैं? भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के जनक सर जेम्स फिट्जजेम्स स्टीफन हैं। सर जेम्स फिट्जजेम्स स्टीफन ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम का मसौदा तैयार करने और उसे लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने भारत में साक्ष्य के नियमों को संहिताबद्ध किया। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 एडवोकेटखोज विवाद्यक तथ्यों और सुसंगत तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकता है। अभियुक्त से प्राप्त जानकारी में से कितनी जानकारी साबित की जा सकती है? अन्यथा प्रासंगिक स्वीकारोक्ति का गोपनीयता के वादे आदि के कारण अप्रासंगिक न हो जाना। यह धारा किसी व्यक्ति को ऐसे तथ्य का साक्ष्य देने के लिए योग्य नहीं बनाएगी जिससे सिविल प्रक्रिया से सम्बन्धित किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के किसी उपबन्ध द्वारा वह साबित करने से निर्हकित कर दिया गया है ।