विश्व–भारत का सत्य सनातन धर्म ही, विश्व विरासत की अनमोल धरोहर हैं

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मेरा प्रेक्टिकल अनुभव सत्य को स्वीकार करता है क्योकि प्राचीन भाषा की नासमझी के कारण भारत के दिव्य ज्ञान को अधकचरे ज्ञानी शास्त्रकारो ने अपनी मनमर्जी से सत्यार्थ को अनर्थ बना दिया, जिसके कारण हमें शास्त्र प्रमाण बताकर, हमको ( विश्व–भारत )भर्मित किया गया, जो हमारे लिए दुख की बात है और मांस खाना सनातन धर्म में परोसना आम बात हों गया, इसी कारण हमारे पूर्वजों ने ब्राह्मणो के अलावा शास्त्रों को दुसरो को पढ़ाना ठीक नही समझा था, लेकिन इस बात को हमने माना नही, अपनी मनमानी के नतीजे आज हम सब भुगत रहे हैं, विदेशी विद्वानो ने भारत की हिंदुत्व संस्कृति का कबाड़ा बना दिया, कोई कुछ बोला नही इसका का कारण उनके पास विरोध करने का मजबूत तर्क नही था, हारे हुए व्यक्ति की कोई बात मानता नही है क्यों की जीत जे लिए प्रमाणित बात की जरूरत होती है, इसका कारण गुरुकुल शिक्षा को नष्ट करना था, ब्राह्मण और क्षत्रियो को आपस में लड़ाया गया, शूद्र नाम का शब्द ही नही था, असि, मसी, कसी शब्द ये तीन शब्द थे, तीन शब्दों को चार वर्ण बनाकर शूद्र शब्द जोड़ा गया, क्यों ? और चार वर्ण बना दिए गए,लेकिन हमें ये भी सोचना होगा की क्या तात्कालीन समय की आवश्यकता थी, तो क्यों? फिर भी प्राकृत भाषा ये कहती है की जो शूद्र शब्द का आज हमें जो अर्थ बताया जाता हैं वो होता ही नही है, तो सवाल होगा आप बताये, फोगट, तो मेरा प्रथम उत्तर ये है की सरकार ने शिक्षा के नाम पर अरबो रूपया खर्च किया, वो क्या था, ये सोचना भी जरुरी हैं क्यों की मेरा सवाल और उत्तर महत्वपूर्ण हैं तो उसकी क़ीमत भी तगडी होना जरुरी हैं, जो देश के विद्वानो के लिए क्रांतिकारी शब्द ज्ञान होगा, क्यों की एक सवाल का उत्तर आपको कलेक्टर बना देता हैं, तो उत्तर कितना कीमती होता हैं, सनातन से ही हिन्दू शब्द आने के पीछे भी बहुत बड़ा दर्शन विज्ञान रहा है जिसे भारत को धर्म धुरंधरो ने बताया ही नही, चिंता ना करें भारत का भविष्य उज्ज्वल हैं, क्यों की ज्ञान विज्ञान के अविष्कार महंगे होते है, ये समझना भी जरुरी है आज के ज्ञानी डिग्रियां देखकर उसका आकलन करते हैं इस बात को समझने के लिए विश्व भारत का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमारे मोदीजी है, पढ़े लिखें दो प्रधानमंत्री की तुलात्मक विश्लेषण कर सकता है इस देश की कहावते भी कहती हैं भणिया करती गणियों आगे निकल जाता हैं, इसका मतलब ये भी नही की पढ़ाई का महत्व कम समझें, अतः उसकी विद्वत्ता को समझना बहुत जरुरी हैं, सत्य बोलना किसी की ठेकेदारी नही हैं, ये मेरा प्राचीन भारत के इतिहास का 25 वर्षो के खोजकार्य का अनुभव जो शास्त्र प्रमाण के साथ बोलता हैं, जो दुनिया में भविष्य मे बहुत बड़ा परिवर्तन करेगा, जब मैं अपना दिव्य ज्ञान रुपियो से बेचना शुरुआत करने की नीव रखूंगा, क्यों की रट्टा ज्ञानियों ने दलाली के बल पर खुद को आगे बढ़ा दिया, दूसरे को बड़े बनने का अवसर दिया नही है, और सत्य को संघर्ष के मायावी झूठ से लड़ना पड़ता हैं,अतः शास्त्र प्रमाण के महत्व को समझना भी जरुरी है या उन ज्ञानियों वो मंच नही दिया जिसकी उन्हें आवश्यकता थी, जब व्यक्ति बड़ा हों जाता हैं तब बड़े बड़े मिडिया वाले आते है, आज साधु संतो के पास सारे संसाधन होते हुए भी उन्होंने धार्मिक इतिहास के आधार स्तम्भ को मजबूत किया ही नही हैं चाहे चाहे वो किसी भी सम्प्रदाय के हों सत्य सत्य होता हैं, ये देश का दुर्भाग्य है, की हमारे वेद पुराणो पर जिस गहराई से अध्ययन करना चाहिए था वो कार्य हुआ ही नही हैं, ये किताबें बोलती है एक तरफ संपूर्ण विश्व के सारे ज्ञानी और एक तरफ अकेला खोजकर्ता जिसकी मेहनत ये बता देगी, की भारतीय इतिहास मे आज तक कितना अंधेरा था, जो पीएचडी वाले या रामजी, कृष्णजी के उपासक भक्त मंदिर ट्रस्ट चलाने वालो ने, सरकार और लोगो को प्राचीन ऐतिहासिक ज्ञान की सच्चाई से आज तक वंचित रखा, या उनकी समझ से परे था, जिस लक्ष्य तक पहुंचना बहुत मुश्किल था, क्यों की प्राचीन इतिहास की जटिल गुत्थियों को सुधारना लोहे जे चने चबाने जैसा था, इस कार्य को सफल बनाने हेतु खोजकर्ता ने अपना जीवन दाँव पर लगा दिया, कहते है कोशिश करने वालो की हार नही होती हैं, जबकि शिक्षा के नाम पर सरकार या अन्य संस्थानो द्वारा अरबो रूपया खर्च हों चुका है, लेकिन भारतीय प्राचीन इतिहास की वंशावली इतिहास और भगवान् श्री रामजी के मूल आधार स्तम्भ ऐतिहासिक वंशावली आज भी गड़बड़ी युक्त कमजोर है, गूगल बेचारा क्या जाने उस बच्चो को जैसा पाठ दोंगे वैसा बोलेगा, वो एक अपनी बात रखने का वैचारिक मंच है दोष उसका नही है, वो आपस मे चर्चा करने का माध्यम है, ये शास्त्र और किताबें बोलती हैं, मेरा दावा है, खोजकर्ता इतनी पोस्ट भेजनें के बाद भी संबंधित पदेन लोग किसी को त्वज्जू ना देना या पोस्ट को ना पढ़ना देश जे भविष्य के लिए उचित नही है, देश मे कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गूगल या अन्य माध्यम पर देना नही चाहते हैं, वे लोग सीधी वार्ता करना करना पसंद करते हैं, सारा काम खरीददार करें, वो उनका काम है लोगो ने अच्छे कार्य करने हेतु अरबो रूपया दिया हैं, अर्थात वे देश और सनातन को क्या बताना चाहते है, काम खोजकर्ता करें और क़ीमत अज्ञानी तय करें ये मुर्ख बनाने के अवसर वाद पदेन व्यक्ति करे, हिरे का मोल झवेरी करेगा, ये न्याय की बात होती है, हम भी देख रहे हैं की भारत के विद्वान दिव्य ज्ञान रूपी हिरे का मोल कैसे करते है तब मिडिया देश को बतायेगा, की मंदिर तो बन गया लेकिन इतिहास अभी अधूरा है, जिसे खोजकर्ता ने प्राचीन सनातन धार्मिक इतिहास की हजारो वर्षो से चली आ रही जटिल गुत्थियो को हजारों किताबो का अपने निजी ग्रंथालय सिरोही राजस्थान के बंसी नारायण खंडेलवाल ने शोध संशोधन सुधार शास्त्र प्रमाण के साथ खोज कार्य किया हैं जो देश के लिए गौरव की बात है, मुश्किल कामो की कीमत क्या होती हैं ये देश के लोगो को और जिस पद पर जो जिम्मेदार लोग विराजमान हैं उन्हें समझना होगा की प्राचीन जटिल इतिहास के गड़बड़ी सुधार के सत्य ज्ञान की क़ीमत क्या होनी चाहिए, क्यों की जटिल गुत्थि सुधार शास्त्र प्रमाण के साथ महंगा होता है तब भारतीय इतिहास का उद्धार होगा, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं परिवर्तन संसार जा नियम है, तभी भारत पुनः धार्मिक इतिहास मे विश्व गुरु बनेगा, और अपनी सनातन धर्म संस्कृति की ऐतिहासिक धर्म ध्वजा की गूंज चारो दिशाओ मे विजय पताका लहरायेगा।

(साभार -बंसी नारायण खंडेलवाल, मु सिरोही, राजस्थान)

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